Tuesday, 19 February 2013

मैं किसी को प्यार देकर क्या करुँगी।

                     
                     मैं किसी को प्यार देकर क्या करुँगी।     

मैं किसी को प्यार दे कर क्या करूंगी,
व्यर्थ का यह  देकर क्या करुँगी।
                फूल ऐसा हूँ कि काँटों  से घिरा हूँ,
                 मैं किसी को खार दे कर क्या करुँगी।
डोलती इस डगमगाती नाव की मैं,
तुझ को  प्रिय पतवार दे कर क्या करुँगी।
                बदली सब निराशा में मेरी अब,
                अब  उन्हें इकरार देकर क्या करुँगी।
जब ख़ुशी ही न दे सकी तो ----
आंसुओं का हार देकर क्या करुँगी।
                 लाख  समझाया न माने बात बात मेरी,
                 फिर उन्हें मैं प्यार देकर क्या करुँगी।
प्यार की अब आग जलती जलती ही नहीं है,
मैं बुझा अंगार देकर क्या करुँगी।
                   इस  विकल टूटे हुए अपने ह्रदय पर,
                   मैं उन्हें अधिकार देकर क्या करुँगी।।
      

Tuesday, 22 January 2013

जिन अधरों ने सरस सुधामय छंदों से था,
विनय अर्चना के तालों में तुम्हे रिझाया,
अंतर्मन के भावों से श्रृंगारित कर के,
करुण मधुर-कटु-उर साधों का अर्घ्य चढ़ाया।
आज उन्ही मेरे स्वर मय अधरों की भाषा ,
यह वर्षा सी बरस रही ऑंखें हो लेंगी,
बंद रहेंगे अधर, मगर ऑंखें बोलेंगी।
टाल समय की गति और नियति की शाप छुड़ा कर,
मैं आई थी तुम्हारे जीवन में, तुम्हे ह्रदय की पीर सुनाने।
विरह-निशा में बीत रही जो मेरे मन पर,
उसी व्यथा का तुम को सांझीदार बनाने,
किन्तु सामना होते ही हो गयी जुबान चुप,
शब्द लहरिया बोली, भेद हम खोलेंगी।
बंद रहेंगे अधर मगर ऑंखें बोलेंगी।।
मैंने सोचा था क्षण भर तो सो ही लूंगी,
सघन तुम्हारे चिकुर भार की मृदु छाया में,
जग की माया भूल जरा फिर खो जाउंगी।
देव! तुम्हारे यौवन की मादक माया में,
और तुम्हारे नयन युग के अम्बर में,
व्याकुल भावों की विहगावलियाँ डोलेंगी,
बंद रहेंगे अधर मगर आँखें बोलेंगी।।
आज मगर मैं हूँ, यह क्षण है, तुम हो,
एक दूसरे को निहारते मौन मग्न से,
कंठ रुद्ध हैं, स्वर वर्जित है, वाणी चुप-चुप,
केवल बात करते ह्रदय की नयन नयन से,
शायद आज युगों के संचित उद्गारों को,
सुधियाँ आँखों के पावन जल में धो लेंगी,
बंद रहेंगे अधर मगर आँखें बोलेंगी।।

Friday, 18 January 2013

तारे गिन गिन काटी मैंने

 तारे गिन गिन काटी मैंने अब तक रातें बहुत अँधेरी !पगली कोयल !पहले आती,मेरे दिल की भी सुन जाती,बैठे आम की डालों पर तू,फिर यूं मीठे गीत गाती,
...
अधरों पर मुस्कान क्षण में दशा बदलती तेरी,तारे गिन गिन कटी मैंने अब तक रातें बहुत अँधेरी !!अल्हड कलियाँ हंसती आई,जग को परिमल खूब लुटाई,पत्ती- पत्ती नाच उठी थी-पर मैं देती रही दुहाई,अरी बहारो ! अब आना सूख गयी है बगिया मेरी !तारे गिन गिन काटी...................जीवन के जो थे उजियारे,भूल गयी मैं सपने सारे,जीवन घन बिन जीवन कैसा-कहता कोई साँझ सकारे,अंतर की ज्वालायें इसको कर देंगी, अब राख की ढेरी,तारे गिन गिन काटी...........सूख गए है बहते सोते,घावों को ये कब तक धोते,प्राणों ! क्या दूँ तुम्हे
आज निराश यूं तुम होते,साध अधूरी ले जाओ, बस अब क्यों इतनी की है देरी,तारे गिन गिन काटी.......

थोडा सा प्यार भी ज़माने से न पाया,

थोडा सा प्यार भी ज़माने से न पाया,
दीप की लौ सा अपना दिल जलाया।
चुन चुन के सबकी राह के कांटे नुकीले,
हार मैंने इस  दिल का था बनाया।
मेरा कोई बुन सके, यह है नामुमकिन,
"रीना" को पर नहीं विश्वास आया।
फूल से दिल पर गिराए वज्र सबने ,
बाज़ लेकिन ये दिल वफाओं से न आया।
आरती जलती रही ,जलती रही पर,
मेरा देवता कब एक पल भी मुस्कुराया।
द्वार तेरा बंद  अब मेरे लिए है,
न जाये किसी दिन अब ये खुलाया।
जबकि यह प्यासा रही दम तोड़ देगा,
पास ये सागर तब आया न आया।
एक तुम को ही भला क्या दोष दूँ मैं,
कौन है ऐसा, दिल न ये जिसने दुखाया।
आंसूं किस किस आँख के न  पोंछें मैंने,
आँख से दुनिया ने मगर फिर  भी गिराया .
कुछ भुलाया इस  तरह मैंने अपने अहम् को,
कोई बेगाना नजर जग में न आया।
जब की मेरी सांस  भी अपनी नहीं है,
कौन अपना? कौन फिर मुझको पराया?
बिन तेरे भी अब मुझको कुछ चैन नहीं है,
गम तेरा शायद कभी जाये भुलाया।
हजारोँ ऐब हैँ मुझमे ,मुझे मालूम है , लेकिन कोई इक शख्स है ऐसा , मुझे "अनमोल" कहता है


 अगर भीगने का इतना ही शौक है , तो देख मेरी आँखोँ मेँ
बारिश तो सब के लिए बरसती है , पर ये आँखेँ सिरफ तुम्हारे लिए बरसती हैँ


 
खुद को समझे वो लाख मुकम्मल शायद , मुझको लगता है वो शख्स अधूरा मेरे बिना
खुदा से गुजारिश है , कि मेरी रुह को दुबारा जिस्म दे
बडी मुद्दत से काटी है , सजा - - जिदंगी


 तुम खुशफहमियोँ मेँ खो जाना वो तो हसँ कर सब से ही मिलते हैँ

 
सब हदेँ तोड कर आज ,
हद कर दी , तेरी याद ने



 
Mohbbat me nahi hai shart, milne ya bichudne ki. . .
 Ye en khudgarz bato se bht aage ki duniya hai. . .




 
Bs Ye Iltiza H Meri,
Bs Falak Tak chal Sath Mere. . .
दिल के रिश्तोँ की नज़ाकत वो समझ पाए ,

नरम लफ्जोँ से भी लग जाती हैँ चोटेँ अक्सर



 
जीती जागती कब्रगाह है ये दिल अपना ,


जाने कितने सपने और उम्मीदेँ दफन है इसमेँ


उसने समझा ही नहीँ और ना समझना चाहा
कि मैँ चाहती भी क्या थी उस से , सिरफ उस के सिवा ।।


 तलब करेँ तो मैँ अपनी आँखे भी उनको दे दूँ , जिँदगी , मगर ये लोग मेरी आँखोँ के ख्वाब माँगते हैँ


 
जिँदगी इक दुकान खिलौनोँ की ,
 वक्त बिगडा हुआ सा बच्चा है

 
जिन्दगी अगर किसी से मिलाती है और अगर आपको उसका दीवाना बनती है,
तो उस प्यार को कौन भुलाता है ?
ये होता है, जब कोई किसी को खुद से बढ़ कर चाहता है।
उसकी पसंद, नापसंद, उसकी ख्वाइश में खुद को भूल जाता है।
अकेले में उसका नाम लिख लिख कर मुस्कुराता है, बात करने के पहले सोचता है, क्या कहना है ?
और बात करने के बाद फिर कुछ कहना रह जाता है।

...
होता है इतना खुबसूरत प्यार,
पर जाने क्यों अक्सर अधूरा रह जाता है ????????????
सपने जो देखे थे जिन्दगी में,
हमसफर मेरे अब वो पूरे हुए,
साया बन कर रहूंगी हरदम साथ तेरे, चाहे हम रहे या रहें।

क्या करें,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

क्या करें आप को भुला नहीं सकते,
तड़प तड़प के जी रहे हैं, मगर,
हाल- -दिल सबको बता नहीं सकते।
क्या करें ,,,,,,,,,,,,,,,,
हर हंसी में छिपे हज़ार आंसूं हैं,
हर तबस्सुम है जिगर के लाख कतरे,
हम तो सैलाब ग़मों का समेटे बैठे हैं।
रोके दिल उनका दुखा नहीं सकते,
यूँ ही हर पल मेरे साथ आप रहा करते हैं,
मुश्किलों को मेरी आसान बना दिया करते हैं,
पर कभी क्या मेरा नाम भी पुकारोगे ?
मुझसे रुठोगे क्या कभी और मुझे मनाओगे ?
मुझको इस बात की कसक बस रहती है,
इक झलक भी कभी हम आपको दिखा नहीं सकते।
क्या करें,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Monday, 14 January 2013

स्पर्श

सुबह तेरे स्पर्श  का एहसास अच्छा  लगा,
तेरा वो मुझे सोते हुए तकते रहना।
तेरा आगोश में समेटना  मुझे, अच्छा लगा,
इक तेरा मुझे आगोश में समेटना, मुझे तेरा हर ख्वाब अच्चा लगा।
हकीक़त से वाकिफ थे हम फिर भी, नामुमकिन से ख्वाब देखना, अच्छा लगा।
मेरी आँखों को पलक झपकाए बिना, तेरा देखना मुझे अच्छा लगा।।
मेरी जुल्फों को सुलझाते सुलझाते, तेरा इन में उलझना मुझे अच्छा लगा।
जिन्दगी आज तुझसे रोशन है, हर ख़ुशी आज तुझसे रोशन है।
आसमा नाज़ तुम पे करता है,
 क्या जरूरत मुझे आज चरागों की, रौशनी आज तुझसे रोशन है।।
खुशक होंठो पे झुकी आँखों की सादगी आज तुझसे रोशन है।।
तुझसे जाना है वायदों का चलन, ये प्यार आज तुझसे रोशन है।

मुझे अब नींद की तलाश नहीं,

मुझे अब नींद की तलाश नहीं,
अब रातो को जागना अच्छा लगता है।
 मुझे नहीं  मालूम के तुम मेरी किस्मत में हो के नहीं,
पर खुदा  से तुम्हे मांगना अच्छा लगता है।
जाने हक़ है या नही, पर तुम्हारी परवाह करना अच्छा  लगता है।
तुमसे प्यार करना सही है या नहीं,  पर इस एहसास को जीना अच्छा लगता है
कभी हम साथ होंगे या नहीं, पर ये ख्वाब देखना अच्चा लगता है।।
 तुम मेरे हो या नहीं, पर तुम्हे अपना कहना अच्छा लगता है

Wednesday, 2 January 2013

वो मुस्कुरा के दर्द टाल देता है,


किसी किसी को खुद ये कमाल देता है,


नज़र उठा के जिसको देख ले वो एक बार,


यकीन करो उसे मुश्किल में डाल देता है।।।।
इतना खुबसूरत चेहरा है तुम्हारा,


हर दिल दीवाना है तुम्हारा,


लोग कहते हैं चाँद का टुकड़ा हो तुम,


लेकिन हम कहते हैं चाँद टुकड़ा है तुम्हारा।।


 
अना परस्त तो हम भी गज़ब के हैं,


बस तेरे गुरुर का एहतराम करते हैं।।
कुछ पल के लिए हमें, अपनी बाँहों में सुलो लो,


अगर आंख खुली तो उठा देना, नहीं तो दफना देना।।।।
वो जो औरों को बताता है, जीने के तरीके?




खुद अपनी मुठ्ठी में मेरी जान लिए फिरता है।।।