मैं किसी को प्यार देकर क्या करुँगी।
मैं किसी को प्यार दे कर क्या करूंगी,
व्यर्थ का यह देकर क्या करुँगी।
फूल ऐसा हूँ कि काँटों से घिरा हूँ,
मैं किसी को खार दे कर क्या करुँगी।
डोलती इस डगमगाती नाव की मैं,
तुझ को प्रिय पतवार दे कर क्या करुँगी।
बदली सब निराशा में मेरी अब,
अब उन्हें इकरार देकर क्या करुँगी।
जब ख़ुशी ही न दे सकी तो ----
आंसुओं का हार देकर क्या करुँगी।
लाख समझाया न माने बात बात मेरी,
फिर उन्हें मैं प्यार देकर क्या करुँगी।
प्यार की अब आग जलती जलती ही नहीं है,
मैं बुझा अंगार देकर क्या करुँगी।
इस विकल टूटे हुए अपने ह्रदय पर,
मैं उन्हें अधिकार देकर क्या करुँगी।।
नमस्कार......शुभ प्रभात.... आपका दिन.........मंगलमय हो ......
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