Friday, 18 January 2013

थोडा सा प्यार भी ज़माने से न पाया,

थोडा सा प्यार भी ज़माने से न पाया,
दीप की लौ सा अपना दिल जलाया।
चुन चुन के सबकी राह के कांटे नुकीले,
हार मैंने इस  दिल का था बनाया।
मेरा कोई बुन सके, यह है नामुमकिन,
"रीना" को पर नहीं विश्वास आया।
फूल से दिल पर गिराए वज्र सबने ,
बाज़ लेकिन ये दिल वफाओं से न आया।
आरती जलती रही ,जलती रही पर,
मेरा देवता कब एक पल भी मुस्कुराया।
द्वार तेरा बंद  अब मेरे लिए है,
न जाये किसी दिन अब ये खुलाया।
जबकि यह प्यासा रही दम तोड़ देगा,
पास ये सागर तब आया न आया।
एक तुम को ही भला क्या दोष दूँ मैं,
कौन है ऐसा, दिल न ये जिसने दुखाया।
आंसूं किस किस आँख के न  पोंछें मैंने,
आँख से दुनिया ने मगर फिर  भी गिराया .
कुछ भुलाया इस  तरह मैंने अपने अहम् को,
कोई बेगाना नजर जग में न आया।
जब की मेरी सांस  भी अपनी नहीं है,
कौन अपना? कौन फिर मुझको पराया?
बिन तेरे भी अब मुझको कुछ चैन नहीं है,
गम तेरा शायद कभी जाये भुलाया।

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