ओ पुरुष !!तुम्हारी जय कैसे बोलूं ? तुमने तो मेरा स्वर ही छीन लिया
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"हाँ " कहने से पहले , निष्ठुर तुम भूल न जाना यह , तुमको जन्म दिया जिसने , वेह नारी है, तुम धकेल दो निष्ठुरता से विस्मृति के अंधकार में चाहे , उस गोदी को जिसकी लोरी ने साँझ ढले , सपनों की परतें , जड़ी तुम्हारी पलकों पर, पर मैं कैसे विस्मृत कर दूँ मैं नारी हूँ . मैंने ही जन्म दिया है, इस मानवता को जा तुझे वचन भी देती हूँ , तेरी अंकुरित फसलों को जीवन दूंगी ,ममता दूंगी ..
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